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 हॉट देसी भाभी की कहानी में पढ़ें कि लॉकडाउन में मेरे पड़ोस की भाभी ने मुझसे सामान मंगवाने के बहाने मुझसे दोस्ती की. वो भी अकेली थी, मैं भी अकेला था.

नमस्कार दोस्तो, आप सभी को रौनक का सप्रेम नमस्कार.
मेरी पहली कहानी कई साल पहले आयी थी.
मैडम की गांड में उंगली

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आज की मेरी हॉट देसी भाभी की कहानी में आप सभी का स्वागत है. आप इस सेक्स कहानी को अभी कुछ दिनों पहले हुई आपबीती ही समझें.

आप सबको तो पता ही होगा कि सारा देश इस समय में कोरोना वाइरस से निदान पाने की कोशिश में लगा है.

सबने यही कहा है कि घर में रहो और स्वस्थ रहो.
पर सोचने वाली बात ये है कि किसी ने ये नहीं कहा कि किसके घर में रहो.

मैं पुणे का रहने वाला हूँ. खुदा की रहमत है कि मैं अभी तक सेफ हूँ. उसका सारा श्रेय मेरे घर के लोगों को और पड़ोसियों को जाता है. मेरे घर के लोग मेरे साथ नहीं हैं … और पड़ोस की भाभी ने मुझे अकेला कभी लगने नहीं दिया.

जब से लॉकडाउन लगा है, लोगों ने वर्क फ्रॉम होम शुरू कर दिया है. तब से मैं भी मेरी बिल्डिंग में ही बंद हूँ. मैं घर की ज़रूरत के सामान लाने के लिए कभी कभी ही बाहर निकलता था.

एक दिन पड़ोस की भाभी ने जब मुझे बाहर जाते हुए देखा, तो अपने शुक शुक अंदाज़ में बुला कर पुकारा.

भाभी- हैलो सुनो, ज़रा मेरा एक छोटा सा काम है … आप वो करके ला सकते हो क्या?
मैंने अपने बरमूडे की जेब में घर की चाभियों को रखते हुए बिना कुछ बोले मुँह हिला कर हां बोल दिया.

इस पर भाभी ने अपने दरवाजे की जाली से एक पर्ची लेने का इशारा किया. मैंने उनसे सामान की पर्ची को ले लिया, उसी के साथ कुछ रूपए भी थे. मैंने पर्ची और रूपए जेब के हवाले किए और आगे बढ़ गया.

कई दिनों से घर में सो-सो कर दिमाग बेसब्र और अनमना सा हो गया था. मैं मास्क लगाए जब दुकान पर पहुंचा, तो देखा कि भाभी ने जो पर्ची दी थी, वो कोई छोटी सी पर्ची नहीं थी. वो पूरे महीने भरके किराने की लिस्ट थी.

जब मैं सारा सामान खरीदने लगा, तो दुकान वाले ने पूछ ही लिया कि घर के सब लोग आ गए क्या!

वहां पर भी मैंने हां में सिर हिलाया और सामान लेकर वापस चल दिया. इस वक्त मेरे पास पूरे चार झोले सामान था, जो कि पड़ोसन भाभी के सामान से ही भरे हुए थे.

मेरा सामान तो जरा सा ही था, मैं वो तो लिया ही नहीं.
मैंने सोचा कि अपना सामान कल फिर से आकर ले जाऊंगा.

फिर दिल ने कहा कि आज की शाम के लिए कुछ तो ले चलूं … तो अपने लिए दो बियर की बोतल पांच नमकीन के पैकेट चखने के लिए खरीद लिए और उन्हीं चार में से एक झोले में रख कर वापिस घर की तरफ चल दिया.

इसके लिए मुझे बहुत मेहनत करना पड़ गई थी. दारू की दुकानें तब खुली नहीं थीं, बड़ी मुश्किल से जुगाड़ हुआ था. लेकिन ब्लैक में चोरी छिपे सब मिल रहा था.

बड़े दिनों से बियर का स्वाद नहीं चखा था तो उसी की याद में जल्दी जल्दी कदम बढ़ाता हुआ अपनी सोसाइटी में आ पहुंचा.

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सबकी नजरों से बचते बचाते हुए अपनी बिल्डिंग के पास गया.
तो पता चला कि लाइट भी नहीं आ रही है. तब होश आया क्योंकि अब पूरे छह मंज़िल तक सीढ़ियां चढ़कर जाना था.

सामान लादे हुए मैंने सीढ़ी चढ़ना शुरू किया, ऊपर की सीढ़ियां चढ़ते चढ़ते पसीना पसीना हो गया.

भाभी जी के फ्लैट के दरवाजे पर कुछ देर तक डोरबेल बजाई.

जब अन्दर से कोई आवाज़ नहीं आई, तो उनका सब सामान दरवाजे पर रख कर अपने घर में चला गया.

पसीने में लथपथ मैं सीधा कपड़े उतार कर नहाने घुस गया. बाथरूम में शॉवर चला कर खुद को पानी ठंडी लगती बूंदों के नीचे खड़ा हुआ तो चैन मिला.

मैं अपने शरीर को रगड़ रगड़ कर मलने लगा.

फिर दस मिनट बाद तौलिया लपेट कर बिस्तर पर लेट गया और ना जाने कब नींद के आगोश में खो गया.

ख्वाबों में मैगी नूडल्स के सपने आने लगे. जब नूडल्स खा कर प्यास लगी, तो बियर की याद आई.

तभी अचानक से आंख खुल गयी और याद आया कि बियर की बोतलों वाला थैला तो अब पड़ोसन भाभी के घर में जा चुका है. ये सोच कर दिमाग भिन्ना गया.

मैं ये सोचने में लग गया कि अगर पड़ोसन भाभी ने बियर की बोतलें देख ली होंगी, तो वो क्या सोच रही होंगी. फिर ख्याल आया कि जो होगा, देखा जाएगा.

इसी सोच के साथ मैं उठ कर पड़ोसन भाभी के दरवाजे को ठोकने के लिए चल पड़ा.

मैं पूरे कपड़े पहन कर बाहर निकला और देखा कि सब सामान अन्दर चला गया है. अब क्या था, जो होना था … सो तो हो ही चुका था. अब बस कोई खेल होने वाला बाकी था, वो क्या होना था, ये भविष्य के गर्त में छिपा था.

मैंने पड़ोसन भाभी के दरवाजे की घंटी पर उंगली रख कर दबा दी. दो तीन बार घंटी बजाने पर भाभी ने दरवाजा खोला और उसी जालीदार दरवाजे से मुझे देखा.

भाभी ने बोला- हां बोलो, क्या काम है?
मैंने भी ताव में बोला- मेरा कुछ सामान आपके सामान के झोले में आपके पास चला गया है.
भाभी ने कहा- तुम यहीं रूको, मैं लेकर आती हूँ.

थोड़ी देर बाद भाभी ने खुद ही अन्दर आने के लिए कहा … और जाली का दरवाजा खोल दिया.

अन्दर जाते ही मैंने भाभी की खूबसूरती और उनके घर की नफासत को देख कर निहाल हो गया.

मेरे दिमाग़ में एक सुकून सा महसूस हुआ. मैं आप सबको बता देना चाहता हूँ कि ये तारीफ उनकी कमर की नहीं कमरे की थी. भाभी ने बहुत खूबसूरत कमरा बना रखा था. भाभी अन्दर जाकर सारे झोले बाहर ले आईं.

फिर मैंने सब झोलों में चैक करके अपने काम की चीज़ को निकाल लिया. जैसे ही मैंने उसे छिपाकर रखने का सोचा, तो उन्होंने ही एक न्यूजपेपर दे दिया.

भाभी ने हल्के से हंस कर कहा- वाह, ये सब अभी भी मिलता है. मुझे तो लगा था कि सब बंद हो गया होगा.
मैंने भी उनकी बात में जोड़ते हुए कह दिया- थोड़ी कोशिश और जुगाड़ से हर चीज़ आसानी से मिल जाती है … ये बियर क्या चीज़ है.
भाभी ने भी उत्सुकता से पूछा- और क्या क्या क्या मिल सकता है?
मैंने भी दम भरते हुए कह दिया- आप जो बोलो, सब मिल जाएगा. बस सही दाम देना पड़ेगा.

इतनी बात करने के बाद मैं उनके घर से बाहर निकलने लगा, तो भाभी ने बड़ी शराफ़त से पूछ लिया- क्या नाम है आपका … आप यहां पर कब से हो. आपके घर में और कौन कौन है?
मैंने भी उसी शराफ़त से बोल दिया- नाम है रौनक … फिलहाल कमरे में बंद कैदी हूँ … और अभी अकेले ही रह रहा हूँ.



मेरे अंदाज पर भाभी जी मुस्कुरा दीं.

अब पहचान बनाने की मेरी बारी थी. मैंने पूछा कि आप भी अपने बारे में कुछ बताइएगा.
भाभी ने कहा- मेरा नाम कविता है. मैं हाउसवाइफ हूँ. मेरे मिस्टर रवि एक मल्टीनेशनल कम्पनी में सेल्स मैनेजर हैं.

मैंने थोड़ी सी तारीफ करते हुए कह दिया- वाह … फिर तो बहुत अच्छी बात है. आपने बहुत खूबसूरती से घर संवारा है.

उसी मूड में कविता भाभी ने आगे बोल दिया- क्या आपको सिर्फ़ ये घर ही खूबसूरत लगा है?
मैंने खुद को संभालते हुए सामने रखी भाभी की कपल फोटो को देखते हुए कह दिया- नहीं, आपकी जोड़ी भी मस्त है.

ये कह कर मैंने कविता भाभी की दबी हुई मुस्कान को देखा.
तो मुझे जरा अजीब सा लगा.

मैंने जब उनके पति रवि के बारे में पूछा, तो भाभी सारी बात संक्षिप्त में बताने लगीं- अरे जोड़ी की तो क्या बताऊं … फिलहाल सीन ये है कि वो काम से दिल्ली गए थे और वहीं पर लॉकडाउन में लॉक हो गए. हर शाम को उनका फोन आता है.

ये सब बात करते हुए भाभी से अंजान से बात करने वाला डर और झिझक खत्म हो गई थी.

फिर मैंने सोचा कि भाभी के पास कल फिर से आने के लिए कोई तो वजह होने चाहिए.
मैंने उनसे पूछा- अगर एक बोतल आपके फ्रिज में रख दूं, तो आपको कोई आपत्ति तो नहीं है?
कविता भाभी ने आराम से कहा- ना जाने रवि कब आएंगे … तब तक तो कोई प्राब्लम नहीं है … वरना वो देखते ही पहले तो पूरा स्टॉक खत्म कर देते और बाद में पूछते कि ये कौन लाया था.

मैं उनकी इस बात से हंस पड़ा और भाभी भी मुक्त हंसी हंसते हुए खिलखिला दीं.

इसी हंसी ठहाके के बाद हम दोनों ने विदा ले ली. एक बोतल भाभी जी फ्रिज में रखने के लिए छोड़ आया.

घर आकर मैं कमरे में आ गया और बियर चटकाने की तैयारी में लग गया. दो पैकेट चखना, एक बियर और एक रोमांटिक मूवी शुरू हो गई. शाम ढल गयी, बियर अन्दर चली गई. फिर पैर पसर गए और रात बीत गयी.

अगली सुबह मेरे दरवाजे पर ठक ठक हुई. मैंने अधनंगी हालत में दरवाजा खोला, तो देखा दरवाजे पर कोई नहीं था, पर सामान की लिस्ट चिपकी थी. लिस्ट खींची, तो रूपए भी थे. मुझे समझते देर ना लगी कि भाभी जी आई थीं.

आज फिर वही काम. आज मैं तीन थैला लेकर गया था, पर आज देखा कि उस लिस्ट में ज्यादातर शाम को खाने पीने की और महफ़िल जमाने की चीजें ही लिखी थीं. एक व्हिस्की की बोतल का भी जिक्र था.

मैंने भी अपनी तरफ से टमाटर सॉस की बोतल, टिश्यू पेपर … ऐयरफ्रेशनर … एक सिगरेट की डिब्बी, दस समोसे का पार्सल बंधवाया और सब सामान लेकर वापस चल दिया.

आज दरवाजे की घंटी बजाने के बाद मैंने दरवाजा खुलने तक का इंतज़ार किया. दरवाजा खुला, तो सामने भाभी जी का मुस्कुराता हुआ चेहरा देख कर आत्मा प्रसन्न हो गई. मैंने सारा सामान घर के अन्दर जाकर रख दिया.

सारा सामान एक झोले में था तो उसे खाली करके अपना सामान निकालने लगा.

व्हिस्की की बोतल कविता भाभी को देते हुए मैंने पूछा- क्या आज रवि जी आने वाले हैं … जो आपने पहले से सब मंगा लिया है?

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कविता भाभी बोलीं- कल आपको देख कर लगा कि आपके जैसे ही मुझे भी वक़्त निकालना चाहिए … इसलिए अब कोई इंतज़ार नहीं … मैं भी अपने वक़्त का सदुपयोग करूंगी.

मैंने जोश में पूछ लिया- सब अकेले ही!
तो उन्होंने भी फोटो की तरफ देख कर कहा- मैं अकेली कहां हूँ.

मैं उनकी तरफ देखने लगा, तो भाभी जी ने एक हल्की सी मुस्कान बिखेर दी.
शायद वो कुछ कहना चाहती थीं. फिर मैंने भी समोसों का पैकेट लिया और अपने घर को चल दिया.

समोसों की खुशबू सूंघ कर कविता भाभी बोलीं- क्या सब समोसे अकेले ही चट करने का इरादा है?
मैंने कहा- भाभी ये मेरा डिनर है … और आपकी फ्रिज की बियर का भी साथ होगा. अकेली रात होगी … तारों के साथ समय बिता दूंगा … और इससे ज्यादा कर भी क्या सकता हूँ!

भाभी ने एक जोर की हंसी बिखेरी और मेरे शायराना अंदाज की तारीफ़ की.

फिर मैं वहां से निकल लिया. न जाने क्यों मुझे कहीं ना कहीं ऐसा लग रहा था कि कविता भाभी कुछ सोच रही हैं. बस मुझे अब इंतज़ार था, तो उस सही वक़्त के आने का, शायद जो जल्द ही आने वाला था.

दो दिन बाहर भेज कर अब ऐसा कोई सामान लाने को नहीं बचा था, जिसके लिए फिर से बाजार भागना बाकी था. अब ज़रूरत ना समझ कर मैंने खुद को अपनी दुनिया में फिर से समेट लिया और मुनासिब वक्त का इन्तजार करने लगा.

उसी दिन दोपहर को फिर से दरवाजे पर दस्तक हुई. दरवाजे पर कविता भाभी ही थीं. वो बड़ी हॉट देसी भाभी लग रही थीं. भाभी ने काफी चुस्त टॉप पहना था और एक पतले कपड़े की कैपरी डाली हुई थी. उनके दूध एकदम तने हुए थे और ऊपर से भाभी खुद ही कुछ अपने चूचे तान कर मुझे दिखा रही थीं.

मैंने उनके मम्मों को देखा और उन्हें देख कर सवालिया निगाहों से देखा.

भाभी ने बड़ी मस्ती से कहा- गैस सिलिंडर बदलना है … आपकी मदद चाहिए.
मैं समझ गया कि आज भाभी जी मूड में हैं और इस लॉकडाउन में इनकी भी चुत में आग लगी होगी.

मैं अगले भाग में भाभी जी की चुदाई की कहानी को विस्तार से लिखूंगा. आपको मेरी हॉट देसी भाभी की कहानी कैसी लगी प्लीज़ मेल करना न भूलें.



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